Lekhika Ranchi

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आचार्य चतुसेन शास्त्री--वैशाली की नगरबधू-


88 . सहभोग्यमिदं राज्यम् : वैशाली की नगरवधू

मध्याह्नोत्तर चतुरंगला छायाकाल में राजसभा का आयोजन हआ। कोसलपति महाराज विदूडभ छत्र - चंवर धारण किए सभाभवन में पधारे। उनके आगे- आगे सोमप्रभ नग्न खड्ग लिए और पीछे सेनापति कारायण खड्ग लिए चल रहे थे । सिंहासन पर बैठते ही महालय से शंखध्वनि हुई । वेदपाठी ब्राह्मणों ने स्वस्तिवाचन पाठ और कुल - कुमारियों ने अक्षत - लाजा -विसर्जन किया । इसके बाद महाराज विदूडभ ने सिंहासन से खड़े होकर आचार्य अजित केसकम्बली को महामात्य का खड्ग देकर कहा - “ आचार्य, मैं आपको कोसल के महामात्य पद पर नियुक्त करता हूं। यह खड्ग ग्रहण कीजिए। ”

आचार्य ने खड्ग ग्रहण करके उच्चासन के निकट आकर उच्च स्वर से कहा - “ सहभोग्यमिदं राज्यम् , साथ - साथ भोगने योग्य राज्य को कोई अकेला नहीं भोग सकता , इसलिए मैं घोषणा करता हूं कि जो अमात्य और राज - कर्मचारी निष्ठापूर्वक अपने अधिकारों पर रहना चाहते हैं , वे शान्तिपूर्वक रहें । महाराज विदूडभ अपने राज्यकाल में उन्हें द्विगुणित भुक्त - वेतन देंगे। जिस अमात्य और राजकर्मचारी ने राजविद्रोह किया हो , उसका वह कार्य पूर्व महाराज प्रसेनजित् के प्रति आदर - भावना का द्योतक समझकर महाराज विदूडभ उसे क्षमा करते हैं । अब वह यदि राजनिष्ठा से राजसेवा करे तो उसकी नियुक्ति यथापूर्वक रहेगी । ऐसे लोग सेवा न करें तो पुत्र , परिजन , धन - सहित स्वेच्छा से जहां चाहें चले जाएं , कोई प्रतिबन्ध नहीं है । परन्तु जो कोई राज्य में विद्रोह करेगा या किसी प्रकार मन - वचन - कर्म से शान्ति - भंग करेगा , उसे कठोरतम दण्ड दिया जाएगा। ”

इस घोषणा के होने पर सभा में हर्ष - ध्वनि और महाराज विदूडभ का जय - जयकार हुआ । महामात्य ने फिर कहा - “ महाराज की आज्ञा से मैं सबसे प्रथम महाराज और कोसल राज्य की ओर से मागध राजमित्र और कोसल के मान्यराज - अतिथि श्री सोमप्रभदेव का अभिनन्दन करता हूं, जिनके शौर्य , विक्रम और मैत्री के फलस्वरूप हमें आज का शुभ दिन देखना नसीब हुआ । महाराज विदूडभ घोषित करते हैं कि आज से कोसल सदैव मगध का मित्र है। मगध का शत्रु कोसल का शत्रु और मगध का मित्र कोसल का मित्र है। कोसल के परममित्र मागध श्री सोमप्रभदेव के अनुरोध पर कोसलपति महाराज विदूडभ यह घोषणा करते हैं कि वत्सराज उदयन की मैत्री चाहे जिस भी मूल्य पर कोसल प्राप्त करेगा और मैत्री का सन्देश लेकर शीघ्र ही कोई राजपुरुष वत्सराज महाराजा उदयन की सेवा में जाएगा । अपनी मैत्री, सद्भावना और कृतज्ञता के प्रकाशन -स्वरूप महाराज विदूडभ मगध- सम्राट को काशी का राज्य भेंट करते हैं । ”

इस पर सब ओर हर्षध्वनि हुई । महामात्य ने कहा - “ अब सन्धिविग्रहिक के पद पर महासामन्त पायासी और अर्थमन्त्री के पद पर महाशाल लौहित्य की नियुक्ति की जाती है तथा राज्य -व्यवस्था के संचालनार्थ आठ अमात्यों का एक अमात्यमण्डल नियुक्त किया जाता है । उनके सामर्थ्य की परीक्षा उनके किए हुए कार्यों की सफलता से की जाएगी । महाबलाधिकृत सेनापति कारायण को और राजपुरोजित वसुभट्ट को नियत किया जाता है , जो शास्त्र - प्रतिपादित गुणों से युक्त , उन्नत कुल में उत्पन्न , षडंग वेदों के ज्ञाता, दंडनीति , ज्योतिष तथा अथर्ववेदोक्त मानुषी और दैवी विपत्तियों के प्रतिकार में निपुण हैं । ”

इसके बाद महाराज विदूडभ को भेंटें दी जाने लगीं । सबसे प्रथम मगध की ओर से सोमप्रभ ने एक रत्नजटित खड्ग भेंट किया । इसके बाद देश - देश के राजा , राजप्रतिनिधि और फिर श्रीमन्त , सेट्ठि तथा पौरगण और राजकर्मचारियों ने भेंटें अर्पण कीं । फिर मंगलवाद्य के साथ यह समारोह सम्पूर्ण हुआ ।

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